अनामिका भारती।लोहरदगा:प्रकृति पर्व सरहुल के उपलक्ष्य में स्थानीय पेपर एजेंसी ,न्यू रोड के सामने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों के द्वारा चना , गुड़ तथा पानी की व्यवस्था की गई थी ।

विभाग संयोजक आदित्य कुमार साहू ने कहा कि सरहुल केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और जीवन के बीच संतुलन का प्रतीक है।
यह उत्सव हमें यह समझाता है कि मानव जीवन का अस्तित्व प्रकृति के साथ गहराई से संबंधित है, और इसे संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है। मौके पर उपस्थित एसएफएस प्रांत प्रमुख छवि सिंह ने कहा कि सरहुल झारखंड में मनाए जाने वाले एक महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में जाना जाता है,

जिसे पूरे राज्य में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।इस दिन आदिवासी समुदाय नए साल का स्वागत करते हैं। सरहुल के अवसर पर प्रकृति अपने नए स्वरूप में नजर आती है, जब पेड़ों पर नए फूल और पत्ते खिलने लगते हैं।

‘सरहुल’ नाम दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘सर’, जिसका अर्थ है सखुआ या साल का फूल, और ‘हुल’, जिसका अर्थ है क्रांति।इसे सखुआ फूल की क्रांति का पर्व भी कहा जाता है. वहीं उपस्थित जिला प्रमुख मनोज्ञा पांडे ने कहा कि यह त्योहार चैत्र महीने की अमावस्या के तीसरे दिन मनाया जाता है

, हालांकि कुछ गांवों में इसे पूरे महीने भर मनाने की परंपरा है। इस दिन लोग अखाड़े में नृत्य और गायन करते हैं और पूजा-अर्चना में भाग लेते हैं।

मौके पर उपस्थित प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य जानवी कंचन गोयल, उपाध्यक्ष अंशु वर्मा,नगर मंत्री जय कुमार, प्रीतम नायक, पृथ्वी तमेड़ा , शताब्दी कुमारी, निर्मला देवी, युवराज ठाकुर, आकांक्षा कुमारी, अलका सोनी, प्रशंसा आदि कार्यकर्ता मौजूद थे।
