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बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होलिका दहन कल।

अनामिका भारती।लोहरदगा:देशभर में होली का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। रंगों की होली खेलने से एक दिन पहले होलिका दहन की परंपरा है, जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग लकड़ियों और उपले से होलिका तैयार करते हैं और शुभ मुहूर्त में अग्नि प्रज्वलित कर पूजा करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भक्त प्रह्लाद को जलाने वाली होलिका स्वयं अग्नि में जल गई थी, जिसके कारण यह पर्व मनाया जाता है।

होलिका दहन की तिथि और शुभ मुहूर्तपंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि 13 मार्च 2025 को सुबह 10:35 बजे शुरू होगी और 14 मार्च को दोपहर 12:23 बजे समाप्त होगी। ऐसे में होलिका दहन 13 मार्च को किया जाएगा और काशी में रंगों की होली 14 मार्च को खेली जाएगी,पर जनमानस 15 को होली का त्योहार मनाएंगे। इस बार होलिका दहन पर भद्रा का साया रहेगा, जो शुभ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है। ऐसे में ज्योतिषीय गणना के अनुसार, भद्रा काल 13 मार्च को सुबह 10:35 से देर रात 11:26 बजे तक रहेगा।ज्योतिषियों के अनुसार, होलिका दहन का सबसे शुभसमय 13 मार्च को देर रात 11:26 बजे से 12:30 बजे तक रहेगा। इस दौरान होलिका जलाने से नकारात्मकता समाप्त होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गलत समय पर होलिका दहन करने से इसका अशुभ प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए, शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान रखें।

होलिका दहन की पौराणिक कथा।पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब हिरण्यकशिपु नाम का असुर राजा अपने पुत्र प्रह्लाद से नाराज था क्योंकि वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकशिपु चाहता था कि उसका बेटा केवल उसकी पूजा करे, लेकिन प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उनकी रक्षा की। आखिर में, हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका की मदद ली, जिसे यह वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती। होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोद में बैठाकर जलती आग में प्रवेश किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जलकर भस्म हो गई।यही कारण है कि हर साल बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में होलिका दहन किया जाता है।

होलिका दहन की परंपरा हुई शुरू।होलिका दहन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसे नकारात्मक ऊर्जा के नाश और सकारात्मकता के आगमन का प्रतीक माना जाता है। इस दिन लोग होलिका की परिक्रमा करते हैं और घर-परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। होलिका की राख को शुद्ध और पवित्र माना जाता है, जिसे लोग अपने घर लाकर तिलक करते हैं ताकि बुरी शक्तियों से बचाव हो सके।

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