शिक्षा भी मनुष्यों को दो अलग प्रजातियों में बांटती है, शिक्षित व अशिक्षित
आकाश कुमार भारत में ही नहीं बल्कि कही भी शिक्षा का बहुत महत्त्व हैं। चाहे वह सामाजिक दृष्टि से हो, राजनीतिक दृष्टि से हो, कानूनी दृष्टि से हो या तकनीकी दृष्टि से हो शिक्षा का हमारे जीवन में बहुत महत्व है । क्योंकि बिना शिक्षा के मनुष्य पशु के समान होता है। और बिना शिक्षा के खुद को या अपने देश को आगे बढ़ाने के बारे में सोच भी नहीं सकते क्योंकि चाहे कुछ भी करना हो बिना शिक्षा के संभव ही नहीं हैं । शिक्षा हमारे जीवन के उज्ज्वल भविष्य को बनाने का सबसे महत्वपूर्ण हथियार है। और इस हथियार का उपयोग कर जीवन में कुछ भी आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। शिक्षा का उच्च स्तर हमें अलग पहचान बनाने में मदद करता है। शिक्षा किसी के चरित्र को सिखने, ज्ञान और कौशल प्राप्त करने के साथ – साथ हमारे सामाजिक सोच में उन्नति करती है और सामाजिक बुराइयों को दूर करती है। शिक्षा हमारे देश में बेरोजगारी दूर करने में मदद करती है। जिस कारण शिक्षा का भारत में महत्वपूर्ण स्थान हैं।भारत में शिक्षा पर खर्च में देश दुनिया में 136वें नंबर पर है.

भारत में शिक्षा पर खर्च में इस साल 3.69% का ही इज़ाफ़ा हुआ है. ।भारत में शैक्षिक ढांचे के मामले में देश 50 देशों में दूसरे नंबर पर है. भारत में कुल साक्षरता दर 74% है. भारत में पुरुष साक्षरता 82.1% और महिला साक्षरता 65.5% है. भारत में आधुनिक शिक्षा की नींव यूरोपीय ईसाई धर्म प्रचारकों और व्यापारियों ने डाली थी.
प्राचीन काल से ही भारत शिक्षा के महत्व के प्रति जागरूक रहा है।

वैदिक युग से, गुरुकुल में शिक्षा का प्रचलन रहा है। अखण्ड भारत में विश्व के प्रथम विश्वविद्यालय तक्षशिला का निर्माण 6ठी से 7वीं सदी ईसा पूर्व के मध्य हुआ था जहां पर अध्ययन करने के लिए विश्व भर से विद्यार्थी आते थे। भारत में ही दुनिया के एक अन्य प्राचीन विश्वविद्यालय जिसे नालंदा विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है का निर्माण हुआ था। आधुनिक तकनीकी संसार में भी व्यक्तिगत उन्नति, सामाजिक स्वास्थ्य में सुधार, आर्थिक प्रगति, राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति, सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता और पर्यावरण की समस्याओं को सुलझाने में शिक्षा बहुत सहायक है।
वैदिक काल में शिक्षा का उद्देश्य आदर्श और महान था।
वैदिक काल में शिक्षा का उद्देश्य आदर्श और महान था। लेकिन समय के साथ-साथ शिक्षा के उद्देश्यों में भी परिवर्तन होता रहा वैदिक काल में जहां शिक्षा अध्यात्म , संगीत, वेद उपनिषद, राजनीति, रण कौशल, आदि पर आधारित हुआ करती थी। मध्यकाल में शिक्षा का उद्देश्य धर्म के प्रचार – प्रसार के लिए हो गया। वहीं आधुनिक काल में शिक्षा का उद्देश्य पुनः बालक के सर्वांगीण विकास पर आधारित हो गया।इस शिक्षा में बालक के मस्तिष्क के विकास की ही नहीं बल्कि उसके शारीरिक विकास पर भी ध्यान दिया जाता है।

आधुनिक पाठ्यक्रम में बालक के हर एक रूचि को ध्यान में रखा जाता है अथवा उसके सर्वांगीण विकास पर विशेष बल दिया जाता है। जिसमें चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व का विकास, नागरिक और सामाजिक कर्तव्यों का पालन, सामाजिक सुख और कौशल की उन्नति, राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण और प्रसार शामिल है।अलग-अलग काल में व्यक्तियों ने अलग-अलग तरीके से जीवन में शिक्षा के उद्देश्य को समझाने का प्रयास किया है। शिक्षा के कई अन्य सार्थक उद्देश्य भी हो सकते हैं। शिक्षा भी मनुष्यों को दो अलग प्रजातियों में बांटती है, शिक्षित व अशिक्षित व्यक्ति में। मनुष्य का व्यक्तित्व बताता है कि वह किस तरह से शिक्षित हुआ है। शिक्षा लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक उत्तम साधन
शिक्षा ज्ञान, कौशल, मूल्य और दृष्टिकोण प्राप्त करने की प्रक्रिया है,
एक व्यक्ति को अपनी क्षमता विकसित करने और समाज में योगदान करने में सक्षम बनाती है। यह एक व्यक्ति की वृद्धि और विकास में एक महत्वपूर्ण तत्व है और किसी के व्यक्तित्व को आकार देने में अहम भूमिका निभाती है। शिक्षा केवल अकादमिक ज्ञान तक ही सीमित नहीं है;

इसमें व्यावहारिक कौशल, समाजीकरण और व्यक्तिगत विकास भी शामिल है।शिक्षा एक सशक्त माध्यम है, जो व्यक्ति को न केवल बौद्धिक रूप से बल्कि नैतिक और सामाजिक दृष्टि से भी समृद्ध बनाती है, जिससे वह समाज में सकारात्मक बदलाव ला सके।
शिक्षा का मतलब ज्ञान,सदाचार,उचित आचरण ।
शिक्षा का मतलब ज्ञान,सदाचार,उचित आचरण,तकनीकी शिक्षा तकनीकी दक्षता,विद्या आदि को प्राप्त करने की प्रक्रिया को कहते हैं। शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। इस प्रकार यह , व्यापारों या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है।शिक्षा, समाज एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है।
शिक्षा’ का अर्थ है सीखना और सिखाना।
शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने कीशिक्षा लोगों के मस्तिष्क को उच्च स्तर पर विकसित करने का कार्य करती है और समाज में लोगों के बीच सभी भेदभावों को हटाने में मदद करती है। यह हमारी अच्छा अध्ययन कर्ता बनने में मदद करती है और जीवन के हर पहलू को समझने के लिए सूझ-बूझ को विकसित करती है। यह सभी मानव अधिकारों, सामाजिक अधिकारों, देश के प्रति कर्तव्यों और दायित्वों को समझने में भी हमारी सहायता करता है।शिक्षा हम सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक उपकरण है। हम जीवन में शिक्षा के इस उपकरण का प्रयोग करके कुछ भी अच्छा प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा का उच्च स्तर लोगों को सामाजिक और पारिवारिक आदर और एक अलग पहचान बनाने में मदद करता है। शिक्षा का समय सभी के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत रुप से बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। यह एक व्यक्ति को जीवन में एक अलग स्तर और अच्छाई की भावना को विकसित करती है।
शिक्षा का बाजारीकरण होने के कारण सभी वर्ग के बच्चों के लिए शिक्षा प्राप्त करना कठिन हो गया है,।
अलग-अलग काल में व्यक्तियों ने अलग-अलग तरीके से जीवन में शिक्षा के उद्देश्य को समझाने का प्रयास किया है। शिक्षा के कई अन्य सार्थक उद्देश्य भी हो सकते हैं। शिक्षा भी मनुष्यों को दो अलग प्रजातियों में बांटती है, शिक्षित व अशिक्षित व्यक्ति में। मनुष्य का व्यक्तित्व बताता है कि वह किस तरह से शिक्षित हुआ है। शिक्षा लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक उत्तम साधन है।वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शिक्षित होने की बात करें तो यह भी उसी दिशा में जाती है जैसा की शिक्षाविदों ने बताया है। विज्ञान भी जीवन की उत्पत्ति एवं सुखद अंत या फिर जीवन एवं मृत्यु से जुड़े सबसे जटिल सवालों के जवाब खोजने में लगा है।आज शिक्षा का बाजारीकरण होने के कारण सभी वर्ग के बच्चों के लिए शिक्षा प्राप्त करना कठिन हो गया है

, आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के बच्चे करियर बनाने के लिए जिस क्षेत्र में जाना चाहते हैं वो वहां तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।वैसे तो शिक्षा पर सबका समान अधिकार माना जाता है लेकिन हकिक़त इसके विपरीत है। ऐसे इस मुद्दें पर हर संभव प्रयास करने की ज़रूरत है जिससे हर जाति और वर्ग में शिक्षा का समान वितरण संभव हो सके।
आजकल शिक्षा महंगी हो रही है पर शिक्षा की गुणवत्ता कम हो गई है, ।
ऐसा इसलिए है क्योंकि आज के दौर में लोग शिक्षा इस लिए करते हैं ताकि अच्छे अंक अर्जित कर पाए ना कि इस लिए कि ज्ञान अर्जित कर सके। इतना ही नहीं बल्कि आज के दौर में लोगों के लिए ज्ञान नहीं बल्कि स्कूल या कॉलेज से मिलने वाले सर्टिफिकेट की ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि सर्टिफिकेट में अच्छे अंक आपको एक अच्छी नौकरी दिलाने में अहम भूमिका निभाता है हम कहे सकते हैं

कि आज के दौर में लोगों शिक्षा अर्जित इसलिए करते हैं ताकि वह एक अच्छी नौकरी हासिल कर सके। पर यह गलत है क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान अर्जित करना होना चाहिए ना कि अपनी विलसता को पूरा करना।
आज की शिक्षा में गुणवत्ता का अभाव पाया जाता है ?
शिक्षा में गुणवत्ता के अभाव का एक मुख्य कारण यह भी है कि हमारे यहाँ शिक्षण का कार्य बहुत सरल और हल्का फुल्का समझा जाता है, अक्सरियत ऐसी मिलेगी जिसे लगता है कि पढ़ाने में क्या है कोई भी पढ़ा सकता है, जिसकी कहीं जॉब नहीं लगती या जिसके पास कोई कार्य नहीं होता उसे सुझाव दिया जाता है कि वह पढ़ाने क्यों नहीं लग जाता ।शिक्षण के लिए सिर्फ़ यह भी काफ़ी नहीं है कि आप के पास बहुत जानकारी है,

बल्कि इससे ज़्यादा अहम यह है कि आप के अंदर चीज़ों की जानकारी के साथ उनकी समझ कितनी है, और उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आप जो समझ रखते हो उसे समझाने और अभिव्यक्त करने की कितनी दक्षता रखते हो, क्योंकि जानकारी के साथ पढ़ाने वाले शिक्षक नोटबुक के पृष्ठों पर तो कुछ बातें लिखवा देगा लेकिन उससे पढ़ने वालों के दिल के सफ़हों पर कुछ नहीं लिखवा पाएगा, ऐसे में “रट्टामार” गिरोह तो तैयार हो जाता है लेकिन सोचने समझने वाला व्यक्तित्व खो जाता है ।
गरीबों की पहुंच से बाहर हो रही महंगी होती किताबें एवं शिक्षा, संस्थानों की फीस ।
देश में लगातार महंगी होती शिक्षा के आम गरीबों और वर्किंग क्लास परिवारों की पहुंच से बाहर होते जाने की त्रासद और कड़वी सच और कहानी भी है.लेकिन यह उन करोड़ों गरीब, वर्किंग क्लास, निम्नवर्गीय और यहां तक कि मध्यमवर्गीय परिवारों की कहानी भी है जो अपने बच्चों की अच्छी और ऊंची शिक्षा के लिए पेट काटकर, जमीन गिरवी रखकर और कर्जे लेकर फ़ीस और दूसरे खर्चे को पूरते है।जिसे पढ़ाई-लिखाई का महत्त्व पता चल गया है. यह वर्ग समझ चुका है कि उनकी और उनके बच्चों की मुक्ति अच्छी और ऊंची पढ़ाई-लिखाई में ही है. इसके कारण पिछले डेढ़-दो दशकों में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा में दाखिला बढ़ा है,

उच्च शिक्षा में पंजीकरण प्रतिशत बढ़ा है, लैंगिक अंतर कम हुआ है. गौर करें तो साफ़ दिखता है कि माध्यमिक से आगे की पढ़ाई-लिखाई आम गरीब, वर्किंग क्लास और निम्न-मध्यमवर्गीय परिवारों की पहुंच से बाहर होती जा रही है. उच्च शिक्षा पहले से ही पहुंच के बाहर हो चुकी है. यहां तक कि प्राथमिक शिक्षा का खर्च उठा पाना भी अधिकांश गरीब और वर्किंग क्लास परिवारों को भारी पड़ रहा है.मुश्किल यह है कि पिछले कुछ दशकों में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा खासकर इंजीनियरिंग-मेडिकल और दूसरे प्रोफेशनल कोर्सेज की फ़ीस और दूसरे खर्चों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है जिसके कारण शिक्षा आम ग़रीब और वर्किंग क्लास परिवारों की पहुंच से बाहर होती जा रही है.
ग्रामीण इलाके के स्थाई श्रमिक की आय का 6.5 फीसदी दो बच्चों की शिक्षा पर खर्च हो जाता है.
एक सर्वेक्षण के मुताबिक, शहरी इलाकों में एक अस्थाई मजदूर की औसत मासिक आय का 38 फीसदी तक उसके दो बच्चों की शिक्षा पर खर्च हो जाता है. ग्रामीण इलाकों में अस्थाई मजदूर की कुल मासिक आय का लगभग 15.2 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च हो जाता है. इसी तरह से शहरी नियमित श्रमिक की औसत मासिक आय का 14 फीसदी और ग्रामीण इलाके के स्थाई श्रमिक की आय का 6.5 फीसदी दो बच्चों की शिक्षा पर खर्च हो जाता है.इन सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण इलाकों में एक अनियमित/अस्थाई मजदूर की मासिक आय का लगभग 26.5 प्रतिशत उसके दो बच्चों की उच्चतर माध्यमिक और 34.3 प्रतिशत तक स्नातक (ग्रेजुएशन) की पढ़ाई-लिखाई और शहरी इलाके के अनियमित मजदूर की मासिक आय का 56 फीसदी तक दो बच्चों की उच्चतर माध्यमिक शिक्षा पर और लगभग 43.5 फीसदी ग्रेजुएशन की शिक्षा पर खर्च हो जाता है.
