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मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह या महादेव मंदिर, कोर्ट के सर्वेक्षण आदेश के बाद सियासी पारा…

इस लेकर अजमेर की अदालत ने 27 नवंबर को याचिका के आधार पर दरगाह के सर्वेक्षण को मंजूरी दी। इसके बाद से मुद्दे को लेकर जमकर सियासत जारी हैविश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर दरगाह (Ajmer Dargah) को महादेव मंदिर घोषित बताने को लेकर जमकर विवाद हो रहा है।न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश में भी इस विवाद से सियासी पारा चढ़ा हुआ है। विवाद की शुरुआत हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता (Vishnu Gupta) की याचिका से हुई, जहां उन्होंने अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित करने की मांग की।इस लेकर अजमेर की अदालत ने 27 नवंबर को याचिका के आधार पर दरगाह के सर्वेक्षण को मंजूरी दी। इसके बाद से मुद्दे को लेकर जमकर सियासत जारी है।दरअसल विवाद की शुरुआत अजमेर के एक सिविल कोर्ट में दायर याचिका से हुई। इसमें हिंदू सेना के अध्यक्ष गुप्ता ने बीते 25 सितंबर 2024 को दरगाह के अंदर एक शिव मंदिर होने का दावा किया।इस लेकर उन्होंने ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव‘ किताब के तर्कों का भी हवाला दिया है। इस किताब में अजमेर दरगाह के नीचे हिंदू मंदिर का जिक्र है।इस लेकर 27 नवंबर को कोर्ट ने याचिका मंजूर कर दी।

इधर, सिविल जज मनमोहन चंदेल ने अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को नोटिस जारी कर 20 दिसंबर तक जवाब मांगा है।हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुप्ता की ओर से कोर्ट में पेश याचिका में उन्होंने 168 पेज की ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव‘ किताब के पेज नं. 93, 94, 96 और 97 का हवाला दिया।उन्होंने कहा कि जब मैंने हरबिलास शारदा की किताब को पढ़ा, तब उसमें साफ-साफ लिखा था कि यहां पहले ब्राह्मण दंपती रहते थे। यह दंपती सुबह चंदन से महादेव का तिलक कर जलाभिषेक करते थे। याचिका में पहला तर्क है कि दरगाह में मौजूद बुलंद दरवाजा की बनावट हिंदू मंदिर के दरवाजों की तरह है, इनकी नक्काशी को देखकर लगाता हैं कि दरगाह से पहले यहां हिंदू मंदिर रहा होगा।इतना ही नहीं याचिका में कहा गया हैं कि दरगाह के ऊपरी हिस्से को देखने पर वहां हिंदू मंदिरों के अवशेष जैसी चीजें दिखती हैं। इनके गुंबदों को देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि किसी हिंदू मंदिर को तोड़कर यहां दरगाह का निर्माण करवाया गया।हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुप्ता का तीसरा तर्क, देश में जहां भी शिव मंदिर हैं, वहां पानी और झरने जरूर होते हैं, ऐसा ही अजमेर दरगाह में भी है।अजमेर दरगाह केस मामले पर सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने कहा कि दरगाह पिछले 800 सालों से यहीं है। नेहरू से लेकर सभी प्रधानमंत्री दरगाह पर चादर भेजते रहे हैं, लेकिन BJP-RSS ने मस्जिदों और दरगाहों को लेकर इतनी नफरत क्यों फैलाई है? उन्होंने कहा कि PM मोदी भी वहां चादर भेजते हैं, फिर निचली अदालतें प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुनवाई क्यों नहीं कर रही हैं? यह देश के हित में नहीं है।PM मोदी और संघ का शासन देश में कानून के शासन को कमजोर कर रहा है। वहीं अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में दीवान के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती की इस लेकर कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई। उन्होंने कहा कि सन 1950 में दरगाह ख्वाजा गरीब नवाज एक्ट की कवायद चल रही है, उस दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज गुलाम हसन की अध्यक्षता में इंक्वायरी कमेटी बनी थी।इस कमेटी की रिपोर्ट पार्लियामेंट में जमा हुई है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में दरगाह का पूरा इतिहास भी था। रिपोर्ट में कौन सी इमारत दरगाह में कब तामीर की गई और किसने बनाई है इसका उल्लेख हैं, लेकिन रिपोर्ट में दरगाह में किसी भी प्रकार का कोई मंदिर होने का उल्लेख नहीं है। 800 साल में कहीं भी कोई जिक्र नहीं है, केवल सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में कुछ लोग ऐसी हरकत कर रहे हैं, जो देश और समाज के लिए ठीक नहीं है।20 दिसंबर को होने वाली अगली सुनवाई में क्या ?अजमेर दरगाह विवाद मामले (Ajmer Dargah dispute case) में 27 नवंबर को याचिका मंजूर कर ली गई। इस लेकर 20 दिसंबर को मामले की अगली सुनवाई होगी। इधर, अगली सुनवाई को लेकर सियासत हो या आम, हर जगह हलचल मच गई है कि आखिर अब क्या होगा? वहीं अगली सुनवाई पर कोर्ट के आदेश पर अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण अपनी रिपोर्ट पेश करने को कह गया है।इधर, सियासत में भी बयानबाजी का दौर जारी है। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा सहित कई नेताओं ने भी इस याचिका विरोध किया।

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