अनामिका भारती।लोहरदगा: हेमंत सोरेन की सरकार में फिर से एक बार अफसरशाही देखने को मिली। पूर्व मंत्री स्व. सधनू भगत को भी सरकार और अफसर राजनीति के चश्मे से देखे जबकि उनको एक बड़ा आंदोलनकारी एवं जनप्रतिनिधि के रूप में देखना चाहिए था। स्व. सधनू भगत ने शिबू सोरेन के आंदोलन के दिनों से केंद्रीय सचिव एवं कार्यालय सचिव का काम किया

एवं शिबू सोरेन के साथ कदम से कदम मिला कर अलग राज्य के आंदोलन को बल दिया। फिर हमलोग खास तौर पर मैं और स्व. सधनू भगत 1986 को नवम्बर माह में एक गैर राजनीति दल वनांचल जागरण परिषद बनाया जिसके केंद्रीय अध्यक्ष स्व. सधनू भगत एवं मैं केंद्रीय महासचिव बना और अवैध रूप से दखल किए हुए आदिवासियों के 6 हजार एकड़ जमीन हमलोगों आंदोलन कर वापस कराया। फिर वो 1995 में भाजपा में आये फिर विधायक बने। फिर सन् 2000 में विधायक बने और

बाबूलाल मरांडी जी के सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। शायद हेमंत सरकार को यही बात चुभती रही तब तो आदिवासी को सम्मान देने का हल्ला करने वाली सरकार ने आदिवासी जनप्रतिनिधि की मृत्यु के बाद प्रशासन की ओर से कोई सम्मान नही दिया गया। जबकि जब हमलोग सरकार में थे तो स्व. शिवप्रसाद साहु

जी की मृत्यु के बाद हमलोगो ने 2 घंटे के अंदर गार्ड ऑफ ऑनर देने का आदेश निकलवाया। वे रांची के पूर्व सांसद थे फिर स्व. कमल किशोर भगत जी पूर्व विधायक को यह दिया गया ।परन्तु एक जननायक को यह गुंगी बहरी सरकार एवं उसकी अफसरशाही नीति ने मृत्यु के बाद बेइज्जत करने का कार्य किया है। इसको हमलोग चुनौती के रूप में लेंगे।
