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वर्षों पुराने दरख़्तों के ख़ून से लिखी जा रही है राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण की इबादत, इलाक़े के लोगों में भारी आक्रोश ।

आकाश कुमार लातेहार।लातेहार विकास ज़रूरी है लेकिन क्या इतिहास को कुचल कर क्या राज्य की पहचान रहे जंगल-पहाड़ों की बलि लेकर? क्या मासूम जानवरों का सुकून छीन कर? क्या राज्य में रहने वाली बड़ी आबादी, यानी आदिवासियों के विश्वास और भावनाओं को कुचल कर? नहीं, बिलकुल नहीं, लेकिन ऐसा ही हो रहा है कुडू से चंदवा होते हुए विंडमगंज जाने वाले एन एच ए आई के भारतमाला प्रोजेक्ट की निर्माणाधीन सड़क पर।बर्बरीक प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी के द्वारा संचालित एनएचएआई के इस प्रोजेक्ट के लिए जिस तरह पेड़ों कटाई की जा रही है वो बेहद चिंताजनक है।

कुडू ,चंदवा, लातेहार के बीच विंडमगंज तक जाने वाली सड़क को पहले चरण में लुकुइया मोड़ होते हुए उदयपुर से जोड़ा जाना है और इस कार्य के संचालन के लिए

बर्बरीक प्राइवेट लिमिटेड

को समविदा आबंटन हुआ है। कंपनी ने क्षेत्र की ऐतिहासिक अमझरिया घाटी में अपना अस्थायी कैम्प डाला है और तेज़ी से कार्यों का संचालन प्रारंभ है।यहाँ गौर करने योग्य बात यह है कि इस इलाक़े में घने जंगल हैं

और वर्तमान सड़क के दोनों ओर सैकड़ों वर्ष पुराने छायादार, इमारती लकड़ियों, यहाँ तक की स्थानीय आदिवासी मान्यताओं के अनुसार पूजनीय वृक्ष भी हैं जिसकी पूजा यह समाज वर्षों से करता आया है और सड़क के चौड़ीकारण के दौरान बेतहासा इन पेड़ों की कटाई की जा रही है।इस विषय पर बात करते हुए

चंदवा के पहाड़ा राजा और प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता तथा आदिवासी नेता धनेश्वर उरांव

कहते हैं की विकास के नाम पर हमारे जंगल इसकी भेट चढ़ रहे हैं इससे आदिवासी मूलवासी भावनाएँ आहत हैं।चलिए विकास के लिए ये क़ुर्बानी दे भी दें तो एनजीटी के प्रावधानों के अंतर्गत कंपनी को पेड़ों की कटाई के अनुपात में कहीं ना कहीं वृक्ष लगाने चाहिए थे

और इसके लिए स्थानीय लोगों और ग्राम सभाओं को विश्वास में लेना चाहिए था पर ऐसा नहीं किया गया है जो चिंता का विषय है।इस विषय पर गहरी चिंता जताते हुए

बोदा पंचायत की मुखिया ललिता देवी ।

कहती हैं कि सड़क बनने की ख़ुशी थी लेकिन पेड़ों की अंधाधुंध कटायी देख कर अब मन विचलित हो रहा है।जब हमारे पेड़, जंगल ही नष्ट हो जाएँगे तो फिर ऐसे विकास का क्या फ़ायदा।ललिता कहती हैं कि हमने वर्षों जिन पेड़ों की छाव में गुज़ारे आज उन्हीं पेड़ों को काट कर ट्रकों पे जाते देखना बहुत दुख देता है, अच्छा होता अगर आदिवासी-मूलवासी भावनाओं को ध्यान में रख कर पहले बड़े पैमाने पर पेड़ लगाये जाते और फिर ज़रूरत के अनुसार कम से कम पेड़ काटे जाते।उन्होंने कहा की इस बाबत वह अपने लोगों से चर्चा कर आंदोलन की तैयारी कर रही हैं।इसी विषय पर जब

आम आदमी पार्टी के झारखंड प्रवक्ता और इंडिया ब्लॉक के प्रदेश के नेता सौरभ श्रीवास्तव

से बात किया गया तो उन्होंने कहा की सड़क बना रही कंपनी का रवैया अहंकारी है और किसी विषय पर बात करने को इसके अधिकारी और कर्मचारी तैयार नहीं रहते।किसी भी विकास कार्य के लिए वहाँ की स्थानीय आबादी को विश्वास में लेने का प्रावधान है लेकिन यहाँ कंपनी के लोग कॉर्पोरेट कंपनी के तर्ज़ पर काम कर रहे हैं जिसे स्थानीय आबादी में रोष है। उन्होंने कहा कि यहाँ एक और बात बेहद महत्वपूर्ण है कि यह इलाक़ा “एलीफैंट मूविंग कोरिडोर” के रूप में चिह्नित है और इन क्षेत्रों में विकास कार्यों के संचालन के अलग प्रावधान होते हैं जिससे वन्य जीवों विशेष कर हाथियों के जीवन पर दुष्प्रभाव से बचा जा सके लेकिन इसपर तनिक भी ध्यान दिये बिना यहाँ काम करने वाली कंपनियाँ मनमानी तरीक़े से कार्य संचालन कर रही हैं जो बेहद चिन्तनीय है और जल्द ही यहाँ के लोग इसपर आंदोलन करने को मजबूर होंगे।

यहाँ यह बताना महत्वपूर्ण है कि पिछले कुछ महीनों से क्षेत्र में आये दिन हाथियों के झुंड के अनियंत्रित होकर आबादी क्षेत्र में चले जाने की घटनाएँ सामने आ रही हैं जिसका सीधा संबंध इस प्रकार हो रहे वनों के क्षय से हो सकता है।यहाँ यह बात भी गौर करने योग्य है कि इस सड़क के प्रोजेक्ट को अपरिहार्य बता कर सभी काम किए जा रहे हैं

और कहा जा रहा है की इसपर सभी प्रकार स्वीकृति है लेकिन कुछ दिनों पूर्व हरियाणा में भारत माला की इसी परियोजना पर एनजीटी ने पेड़ों की कटाई और जल श्रौतों को नुक़सान पहुँचाने के लिए पैंतालीस करोड़ का भारी भरकम जुर्माना लगाया था जिसे बाद में उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था, इसलिए ऐसा नहीं है

कि देश हित की आड़ में यह परियोजनाएँ सभी मानको को नज़र अंदाज़ करने के लिए स्वतंत्र हैं।कुल मिलाकर यह सड़क परियोजना आज की तारीख़ में दोधारी तलवार की तरह है जिससे विकास तो पता नहीं भविष्य में कितना हो लेकिन वर्तमान में प्रकृति पर नश्तर चला कर स्थानीय और आदिवासी भावनाओं और मूल्यों की बलि चढ़ा कर, वर्षों पुराने दरख़्तों को नष्ट कर के बनने वाली यह सड़क और इसे बनाने वाली तुगलकी कंपनी और उसके तानाशाही करने वाले कर्मचारी आदिवासी, मूलवासी और स्थानीय लोगों को शूल की तरह चुभ रहे हैं।

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आम रैयत भी मुआवजा को लेकर आक्रोश में

आम रैयतो ने एनएचएआई पर आरोप लगाया है। जो कम्पनी सड़क बनाने का कार्य कर रही है। वह रैयतों को बाजार मूल्य के आधार पर मुआबजा नही दे रही है। और पेड़ पौधे काटना शुरू कर दिया है। जबकि फॉरेस्ट ने भी लिखित कोई कागजात सड़क बनाने वाली कंपनी को अभी तक नहीं दिया है। परंतु यह सड़क बनाने वाली कंपनी अपनी मनमानी तरीके से हजारों इमारती पेड़ काटकर पेड़ के कटे लकड़ी को अपने स्थान पर ले जा रही है।

जिसे भी हम सभी ग्रामीण आहत महसूस कर रहे हैं। राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मांग सभी रैयत कर रहे हैं कि रैयतों को सही मुआवजा और

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एनएचएआई को निर्देशित करें कि जो भी कंपनियां सड़क बनाने का कार्य कर रही है उसे बाजार मूल के रूप में रैयतों को मुआवजा देने का कार्य करें

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