अनामिका भारती:लोहरदगा:भाई दूज का पर्व बहन और भाई के विश्वास और प्रेम का होता है। हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। देशभर में भाई दूज के पर्व को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है।यह दिन भाई बहन के प्यार और स्नेह के रिश्ते का प्रतीक होता है।इस पूजा के लिए सबसे पहले सुबह उठकर सभी लड़कियां इकट्ठा होती हैं

और उस स्थान जहां पूजा होनी है की साफ सफाई कर गोबर से पुताई करती हैं।गोबर से ही सांप, बिच्छू और यम-जामी की काल्पनिक प्रतिमा जमीन पर ही बनाई जाती है।सारी लड़कियां तैयारी करने के बाद अपने घर चली जाती हैं।पूजा का सामान समेट कर फिर सारी लड़कियां व महिलाएं पूजा स्थल पर जुटती हैं। इसका मुख्य प्रसाद चना होता है।ऐसी मान्यता है कि इस प्रसाद को खाने से दाढ़ी मूछ आती है इसलिए लड़कियां भाईदूज का प्रसाद नहीं खाती हैं।क्या है गोधन पूजा की कथा।गोधन पूजा के पीछे कथा भी सुनाई जाती है।कहा जाता है कथा एक बहन और उसके भैया-भाभी से जुड़ी हुई है। लड़की की भाभी का एक प्रेमी था, जो इच्छाधारी नाग होता है।

इस षड्यंत्र को न समझते हुए लड़की का भाई इच्छाधारी नाग को मार देता है। जिसे काट काटकर प्रेमी भाभी कुछ अंश खटिया के नीचे, कुछ अंश दीये में, तो कुछ अपने जुडे में रख लेती है। इस बारे में पति कुछ समझ नहीं पता है।अंत में बहन को यह सब मालूम हो जाता है, जो अपने भाई की रक्षा करती है। इसे आज भी परंपरागत तरीके से महिलाएं और लड़कियां बड़े धूमधाम से मनाती है।बहनें जीभ में चुभाती हैं कांटे।बहनें इस पूजा के दौरान रेंगनी (औषधि) के काटे अपने जीभ में चुभाती हैं।इसके बाद यम-जामी को सुहागिन महिलाएं और लड़कियां कूटती हैं और गीत गाती हैं और अपने लट(बाल) धोती हैं।
